
किडनी फेलियर (Chronic Kidney Disease) आज दुनिया भर में एक गंभीर स्वास्थ्य समस्या बन चुकी है। जब किसी व्यक्ति की दोनों किडनियाँ काम करना बंद कर देती हैं, तो उसके पास जीवित रहने के लिए केवल दो ही विकल्प बचते हैं: डायलिसिस या किडनी ट्रांसप्लांट। डायलिसिस न केवल कष्टदायक और महंगा है, बल्कि यह मरीज की जीवनशैली को भी सीमित कर देता है। वहीं, ट्रांसप्लांट के लिए डोनर मिलना किसी चमत्कार से कम नहीं है। इसी कमी को दूर करने के लिए वैज्ञानिकों ने ‘रोबोटिक आर्टिफिशियल इम्प्लांटेबल किडनी’ (Robotic Artificial Implantable Kidney) विकसित की है।

यह क्या है और कैसे काम करती है?
कैलिफोर्निया विश्वविद्यालय, सैन फ्रांसिस्को (UCSF) के वैज्ञानिकों द्वारा ‘द किडनी प्रोजेक्ट’ के तहत विकसित यह उपकरण एक छोटी मशीन है जिसे सर्जरी के जरिए शरीर के अंदर फिट किया जा सकता है। यह आकार में काफी छोटा होता है और मानव किडनी के समान ही कार्य करता है।
इसके मुख्य रूप से दो भाग होते हैं:
* हेमोफिल्टर (Hemofilter): यह सिलिकॉन नैनोफिल्टर का उपयोग करके रक्त से विषाक्त पदार्थों, यूरिया और अतिरिक्त पानी को बाहर निकालता है।
* बायोरिएक्टर (Bioreactor): इसमें जीवित किडनी कोशिकाएं होती हैं जो पोटेशियम और सोडियम जैसे इलेक्ट्रोलाइट्स का संतुलन बनाए रखती हैं और रक्तचाप को नियंत्रित करने वाले हार्मोन बनाती हैं।
रोबोटिक किडनी के मुख्य लाभ
रोबोटिक और नैनो-टेक्नोलॉजी पर आधारित यह किडनी पारंपरिक डायलिसिस के मुकाबले कई गुना बेहतर है:
* बैटरी की जरूरत नहीं: यह उपकरण शरीर के स्वाभाविक रक्तचाप (Blood Pressure) से चलता है। इसे चलाने के लिए किसी बाहरी बिजली स्रोत या बैटरी की आवश्यकता नहीं होती।
* दवाओं से मुक्ति: सामान्य किडनी ट्रांसप्लांट के बाद मरीज को जीवन भर ‘इम्यूनोसप्रेसेन्ट’ दवाएं लेनी पड़ती हैं ताकि शरीर नई किडनी को रिजेक्ट न करे। लेकिन आर्टिफिशियल किडनी में कोशिकाएं फिल्टर के अंदर सुरक्षित रहती हैं, इसलिए इन दवाओं की जरूरत नहीं होती।
* निरंतर सफाई: डायलिसिस हफ्ते में दो-तीन बार होता है, जबकि यह आर्टिफिशियल किडनी 24 घंटे खून की सफाई करती रहती है, जिससे शरीर में जहर जमा नहीं होता।

चुनौतियाँ और भविष्य
वर्तमान में यह तकनीक क्लिनिकल ट्रायल (Clinical Trials) के चरणों में है। वैज्ञानिकों ने पशुओं पर इसके सफल परीक्षण किए हैं और अब मनुष्यों पर इसके बड़े स्तर पर परीक्षण की तैयारी चल रही है। सबसे बड़ी चुनौती इस उपकरण को लंबे समय तक शरीर के भीतर बिना किसी तकनीकी खराबी के चालू रखना है।
निष्कर्ष
रोबोटिक आर्टिफिशियल किडनी चिकित्सा विज्ञान के क्षेत्र में एक क्रांतिकारी कदम है। यह न केवल लाखों मरीजों को डायलिसिस की सुइयों और मशीनों से मुक्ति दिलाएगी, बल्कि उन्हें एक सामान्य और सक्रिय जीवन जीने का अवसर भी प्रदान करेगी। आने वाले दशक में यह तकनीक किडनी के मरीजों के लिए वरदान साबित हो सकती है।
